Maa shoolini temple solan (सोलन का शूलिनी माता मंदिर )

    नमस्कार दोस्तों ,

                                आज में फिर एक नए ब्लॉग के साथ आई हुं | आज में फिर आपको एक तीरथ स्थान के बारे में बताने जा रही हुं |  हिमाचल एक ऐसा राज्य है |जिसके अंदर बसे सभी स्थानों के नाम की अपनी  अपनी दिलचस्प कहानी है | क्योंकि अधिकतर जगहों के नाम किसी ना किसी देवी देवताओं के नाम पर ही रखे गए है या फिर आप ऐसा भी कहे सकते है की नाम पड़े है | आज में आपको एक ऐसे ही स्थान के बारे मे बताने जा रही हु | जिसका नाम वह पर स्थित मंदिर की देवी के नाम पर रखा गया है |

    सोलन 

                  सोलन का नाम शूलिनी माता के नाम पर पड़ा है  सोलन हिमाचल प्रदेश के बारह जिलो में से एक जिला है  माता शूलिनी सोलन की आधिष्ठात्री देवी है| भगवत पुराण में माँ दुर्गा के असख्य नामो में से एक नाम माता शूलिनी का भी है कहा जाता है की सिखों के दसवे गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी शूलिनी नाम से ही देवी माँ की आराधना की थी |माता शूलिनी की और भी बेहेने है ; हिंगलाज, लुगासनी,जेठ ज्वाला, तारा देवी,नेना देवी | इन सभी को दुर्गाव्तार माना जाता है|    

           

शूलिनी माता मंदिर ( SHOOLINI TEMPLE

                           कहा जाता है की शूलिनी देवी को भगवान शिव की शक्ति माना जाता है | कहेते है की जब देत्य महिषासुर के अत्याचारों से सभी देवी  देवता और ऋषि - मुनि तंग हो गए थे, तो वे सभी भगवान शिव और विष्णु जी के पास गये और  उनसे  सहायता  मांगी तब भगवान शिव और विष्णु के तेज से भगवती दुर्गा जी प्रकट हुई थी | जिसे देख कर सभी देवी देवता खुश  हो गये और सभी देवी देवताओ ने अपने अश्त्र-शस्त्र भेट करके  माता का समान किया था | इसे  शिव भगवान् जी ने  त्रिशूल में से एक त्रिशूल निकाल  कर  देवी माँ क भेट किया, जिसकी वजह से  माँ का नाम शूलिनी पड़ा था | ये वही त्रिशूल है,जिसे माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध था |माता शूलिनी के नाम से ही सोलन शहर का नाम पड़ा था  |                                

                                                                                                                                  

शूलिनी माता का इतिहास                                                                                                                                                         शूलिनी माता का इतिहास बघाट रियासत से जुडा है | सोलन शहर स्वतंत्रता से पूर्व बघाट रियासत की राजधानी के रूप में जाना जाता था | इस रियासत की नीव राजा बिजली देव ने रखी थी | बारह घाटो से मिलकर बनने वाली बघाट रियासत का क्षेत्रफल ३६ वर्ग मिल में फेला हुआ था | राजा दुर्गा सिंह इस रियासत के अंतिम शासक थे | माना जाता है की बघाट रियासत के शासको ने यहाँ आने के साथ ही अपनी कुलदेवी शूलिनी माता की स्थापना सोलन गाव में की और इसे रियासत की राजधानी बनाया | बघाट रियासत के शासक अपनी कुल देवी को खुश रखने के लिए मेला का आयोजन करते थे,तब से सोलन में जून के महीने में माता शूलिनी के नाम पर मेला होता है| बदलते समय के दोरान यह  मेला आज भी अपनी पुराणी परम्परा के अनुसार चल रहा है |
                      
                                     कहते है  कि वर्तमान समय के अंदर माता शूलिनी का मंदिर सोलन के अंदर दक्षिण दिशा में बना हुआ है | इस मंदिर में शूलिनी माता के अलावा अन्य देवी देवताओ की भी पूजा की जाती है | इस मंदिर के अंदर माता शूलिनी की भव्य प्रतिमा विधमान है यहाँ मान्यता है की अगर माँ खुश हो जाये तो सभी प्रकार के दुःख दर्द और प्रकोप दूर हो जाते है | माता शूलिनी के प्रसन होने पर किसी भी प्रक्रति आपदा या महामारी का कोई प्रकोप उस राज्य में नही होता | अपितु उस राज्य में सुख समृधि का वास होता है | उस समय से लेकर आज तक मेले की वही परम्परा आज भी वेसे ही जारी है | कहेते है की इस मेले के जरिये माँ शूलिनी अपने शहर के भ्रमण पर निकलती है और जब वापिस आती है, तो अपनी बहन के पास दो दिन के लिए रूकती है | इसके बाद माता वापिस अपने स्थान पर आ जाती है, मेले में कई सरधालो भण्डारो का आयोजन करते है | कहा जाता है की उन तीन दिनों में कोई भी उस राज्य में भूखा नही सोता हर कोई अपनी अपनी इच्छा अनुसार मेले में माता के नाम का भंडारा करता है कोई खाना खिलाता है कोई पानी पिलाता है कोई मिठाई खिलाता है |
                               
 हर साल मेले की शुरुवात माँ शूलिनी की शोभा यात्रा से की जाती है , जिसमे माता की पालकी के अलावा विभिन्न धार्मिक झाकिया भी निकाली जाती है | इस यात्रा में हजारो की संख्या में लोग माता शूलिनी के दर्शन करके सुख समृधि का आशीर्वाद प्राप्त करते है | माँ शूलिनी के दर से कोई भी भगत निराश वपिस नहीं लोटता | पहले के समय में यहाँ मेला केवल एक दिन का ही होता था परन्तु वर्तमान समय मे यहाँ मेला ३ दिन का होता है सोलन जिले के अस्तित्व में आने के बाद इसका सांस्कृतिक महत्व बनाये रखने के लिए तथा इसे और आकर्षित बनाये रखने के लिए इस मेले को राज्य स्तरीय मेले का दर्जा दिया गया है | इस मेले में भाग लेने के लिए लोग दूर दूर से आते है इसमे काफी अच्छा सांस्कृतिक प्रोग्राम का आयोजन किया जाता है | इस मेले को देखने के लिए लोग दुसरे राज्यों से भी आते है |    

     इस साल यह मेला 24, 25 और 26 जून महीने मे मनाया जा रहा है ।

                                                  हमे  उमीद है की हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी | यदि आप इसके बारे में और अधिक जानना चाहते हैं या फिर किसी और मंदिर या जगह की जानकारी लेना चाहते है तो कृपया कोमेंट बॉक्स में लिखे यदि  इस आलेख को लिखते हुए हमसे कोई गलती हुई हो तो उसके लिए हमे क्षमा करे और हमे कोमेंट करके जरुर बताये ताकि हम आपको अपने आने वाले आलेखों में एक बहेतरिन सुधर के साथ आपको अच्छी जानकारी उपलब्ध कराए |

                                 जै माता शूलिनी

               

                                                                                                                                                                              

                                                   

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