Mata Tara Devi Temple (माता तारा देवी मंदिर )

नमस्कार दोस्तों , 

                               आज में आपको एक बहुत ही सुंदर और भव्य मंदिर के बारे में बताने जा रही हुं | यह मंदिर पहाड़ों  की रानी शिमला के एक क्षेत्र में स्थित है | इस  मंदिर के नाम पर ही इस क्षेत्र का नाम पड़ा है | आज में जिस मंदिर के बारे में बताने जा रही हुं उसका नाम है माता तारा देवी | तारा देवी के नाम पर ही इस क्षेत्र को जाना जाता है | यह मंदिर शिमला से 11 किलोमीटर दूर एक ऊँची चोटी पर स्थित है | जिसे तरव पर्वत के नाम से जाना जाता है | यह मंदिर बहुत ही सुंदर और भव्य है यह मंदिर चारों और से देवदार और अन्य सुंदर वनों से गिरा हुआ है | यह मंदिर काफी पुराना है |



Tara Devi temple



इस मंदिर से जुड़ी एक बहुत ही रोचक कहानी है | 

                                 कहा जाता है की यहा मंदिर राजा भूपेंद्र सेन ने बनवाया था | इस मंदिर का निर्माण लगभग 250 वर्षो पूर्व किया गया था | कहा जाता है की इस देवी को पूर्वी बंगाल से हिमाचल प्रदेश में लाया गया था |  इस देवी को हिमाचल में सेन वश का ही एक शासक यह लेकर आया था | ऐसी मान्यता है की सैंकड़ो वर्ष पहले एक शासक  जो  सेन वश के राजा थे उन्होंने इस राज्य का दोरा  किया था | कहते है की यह राजा हमेशा अपने साथ अपने परिवार के देवता को एक छोटे से सोने की मूर्ति को एक लोकेट के रूप में रखता था | और उसे हमेशा अपनी ऊपरी बाज़ू के आस पास बाँध कर रखता था |

                                    कहा जाता है की कई सालों बाद सेन वश के दसवें पीडी के शासक राजा भूपेन्द्र सेन  तारा देवी मंदिर के घने जंगल में शिकार खेलने आयें थे | शिकार खेलने के दौरान उन्हें उनके परिवार के देवता के दर्शन हुए और साथ ही साथ तारा देवी , हनुमान जी और भेरव जी के भी दर्शन हुए | माँ तारा देवी ने राजा से यही बसने और अपना एक मंदिर बनवाने की  इच्छा जताई  ताकि उनके भगत आसानी से उनके दर्शन कर पाए | इसके बाद ही राजा ने मंदिर बनवाने का कार्य शुरु कर दिया था | 

                



                                         राजा भूपेन्द्र ने मंदिर को बनवाने के लिए जमींन का एक बहुत बड़ा हिस्सा दान में दिया था | और मंदिर बनवाने का कार्य शुरु किया था |जिसमे वैष्णोव्  परम्पराओं के अनुसार लकड़ी की एक माता की मूर्ति की बनवा कर मंदिर में  स्थापित किया गया है | और आज भी यह मूर्ति इस मंदिर में स्थापित है | कहते  है बाद में इसी वश के एक और शासक जिनका नाम बलबीर सेन था इन्हे भी माता ने दर्शन दिए | जिसके बाद बलबीर सेन ने माता की एक अष्टधातु की एक मूर्ति बना कर इस मंदिर में  स्थापित की | जो आज भी बड़ी ही भव्यता के साथ आज भी इस मंदिर में स्थापित है | कहा जाता है की सेन वश आज भी हर साल शारदीय  नवरात्रों के दिन आज भी अपने परिवार के साथ अष्टमी नवरात्रे को अपने देवता और माता तारा देवी की पूजा को पारम्परिक तरह से करने आता है  नवरात्रों के दौरान यहाँ मेले का भी आयोजन किया जाता है जिसमे कुश्ती का आयोजन भी किया जाता है 

                      





इस मंदिर से जुड़ी कुछ मान्यताये है |

                  इस मंदिर से जुड़ी भी बहुत सी मान्यताये है कहा जाता है की  इस मंदिर की यह मान्यता है की जो भी भगत यहाँ सच्चे मन से मुराद मांगता है माता उसकी हर मुराद पूरी करती है माता के भगतो का कहना  है की माता बहुत से चमत्कार करती है कई लोग जो बहुत दुखी होकर  माता के पास आते है माँ उनके सभी दुःख दूर कर देती है |                      


                                                                      जय माता दी 

   हमे  उम्मीद है की हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी | यदि आप इसके बारे में और अधिक जानना चाहते हैं या फिर किसी और मंदिर या जगह की जानकारी लेना चाहते है तो कृपया कोमेंट बॉक्स में लिखे यदि  इस आलेख को लिखते हुए हमसे कोई ग़लती हुई हो तो उसके लिए हमे क्षमा करे और हमे कोमेंट करके ज़रुर बताऐ ताकि हम आपको अपने आने वाले आलेख में एक बहेतरिन सुधर के साथ आपको अच्छी जानकारी उपलब्ध कराए |

                                                                                   धन्यवाद 

                               


      

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

महामाया मंदिर