आज में फिर आप सब के लिए एक नया ब्लॉग लेकर आई हुं | हिमाचल में ज्यादातर लोग धार्मिक किस्म के है | यहाँ पर रहने वाले लोगो की देवी देवताओं पर बहुत ज्यादा आस्था है | यही मुख्य कारण है की यहाँ पर सबसे ज्यादा देवी देवताओं के मंदिर है | और हर मंदिर की अपनी एक कहानी है | आज में आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रही हुं यहाँ मंदिर हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित है | और इस मंदिर का नाम है चामुण्डा देवी मंदिर | चामुण्डा देवी मंदिर 51 शक्ति पीठो में से एक है |
चामुण्डा देवी मंदिर एक ऊँची चोटी पर स्थित है इस मंदिर की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 1000 मी है | यह मंदिर नदी के किनारे बना हुआ एक सुंदर और भव्य मंदिर है | चामुण्डा देवी मंदिर मुख्यता काली माता को समर्पित है | जिनका दूसरा नाम देवी दुर्गा भी है |
चामुण्डा देवी की उत्पति की कथा
पुराणिक कथा के अनुसार सभी माताओ की उत्पति की एक ही कथा है | चामुण्डा देवी माता सती का ही रूप है | कहानी कुछ इस तरह है की भगवान शिव की शादी माता सती से हुई थी माता सती के पिता का नाम राजा दक्ष था वो भगवान शिव को अपने बराबर नहीं मानता था | एक बार महाराज दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ का आयोजन किया उन्होंने सभी देवी देवताओं की निमंत्रण भेजा किन्तु भगवान शिव और माता सती को निमंत्रण नहीं भेजा गया | यह देखकर माता सती को बहुत क्रोध आया और उन्होंने वह जाकर अपने पिता से इस अपमान का कारण पूछने के लिए उन्होंने शिव भगवान से वह जाने की आज्ञा मांगी किन्तु भगवान शिव ने उन्हें वह जाने से मना की किन्तु माता सती के बार बार आग्रह करने पर शिव भगवान ने उन्हें जाने दिया | जब बिना बुलाए यज्ञ में पहुंची तो उनके पिता दक्ष ने उन्हें काफी बुरा भला कहा और साथ ही साथ भगवान शिव के लिए काफी बुरी भली बातें कही जिसे माता सती सहन नहीं कर पाई और उन्होंने उसी यज्ञ की आग में कूद कर अपनी जान दे दी | यह देख कर भगवान शिव को बहुत क्रोध आया और उन्होंने माता सती का जला हुआ शरीर अग्नी कुंड से उठा कर चारों और तांडव करने लग गये जिस कारण सारे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया यह देख कर लोग भगवान विष्णु के पास भागे तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े किये ये टुकड़े जहाँ जहाँ गिरे वह पर शक्ति पीठ बन गए | मान्यता के अनुसार इस स्थान पर माता के चरण गिरे थे |
माता के चामुण्डा देवी नाम पड़ने के पीछे भी एक कहानी है |
माता के चामुण्डा देवी पड़ने के पीछे भी एक कथा है जो इस प्रकार है | कहा जाता है की हजारों वर्षो पूर्व धरती पर शुम्भ निशुम्भ नामक दो राक्षसों का राज था |उन्होंने पुरे स्वर्ग पर अपना अधिकार कर रखा था उनसे डर कर देवता भी भय से इधर उधर छिपते फिर रहे थे | एक दिन सभी देवताओं ने विचार किया और सभी ने सहायता के लिए देवी दुर्गा जी का स्मरण किया उनकी स्तुति से प्रशन होकर माता ने उन्हें उन देत्यो से रक्षा करने का वरदान दिया | इसके बाद माता ने अपने दो रूप धारण किए | माता का एक रूप महाकाली कहलाया और दूसरा रूप माता अम्बे कहलाया कहा जाता है की महाकाली ने जग में इधर उधर घूमने शुरू किया और माता अम्बे जी हिमालय में रहने लगी | तभी चंड मुंड जो शुम्भ निशुम्भ के सेनापति थे माता अम्बे को हिमालय में बैठे हुए देखा | उन्होंने इतनी सुंदर नारी पहले इस हिमालय में पहले कभी नहीं देखी थी | वो माता की सुन्दरता को देखते ही रह गये | वह जल्दी से शुम्भ निशुम्भ के पास गये और कहने लगे है देत्यराज आप दोनों तो तीनो लोको के स्वामी है जितने भी अमूल्य चीजे इस धरती पर है वो सब आपके पास है | आज हमने हिमालय में एक बहुत ही सुंदर नारी को देखा वह नारियो में सबसे अमूल्य हैं वह तीनो लोको में सबसे सुंदर है ऐसी दिव्य नारी आपके पास ही होनी चाहिए | यह सुन कर शुम्भ निशुम्भ ने तुरंत अपना एक दूत माता के पास भेजा | दूत माता के पास गया और वह जाकर माता से शुम्भ निशुम्भ की खूब प्रशंशा की ये सब बाते सुनकर माता ने दूत से कहा की में मानती हुं की वो दोनों शक्तिशाली और बलशाली है परन्तु में तुम्हारे साथ नही चल शक्ति क्योंकि मैने एक प्रण ले रखा है की जो भी मुझे युद्ध में हराएगा में उसी से विवाह करुगी | यह सब दूत ने जाकर जब शुम्भ निशुम्भ को बताया तो यह सुन कर उन्हें बहुत क्रोध आया | तभी उन्होंने अपने सेनापति धुम्रविलोचन को सारी सेना लेकर माता को पकडने के लिए भेजा परन्तु वह माता का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाए अपितु माता ने उन सब का नाश कर दिया अपनी सेना का हुआ ये विनाश देख शुम्भ निशुम्भ को खूब क्रोध आया और तब उन्होंने चंड मुंड दोनों राक्षसों और रक्तबिज नामक राक्षस को माता को पकड़ कर बंदी बनाने के लिए भेजा | दोनों राक्षसों ने माता को उनके साथ चुप चाप चलने के लिए कहा | परन्तु माता ने उन्हें साथ चलने के लिए मना कर दिया माता के मना करने पर उन्होंने माता पर अपने अस्त्रों से वार कर दिया | माता ने तुरंत काली का रूप धारण किया और तुरंत उन सब के शीश उनके धड से अलग कर दिए और उन सब को माला में बना कर अपने गले में टाँग लिए | जब वह वापिस माता अम्बे के पास वापिस गई तो अम्बे माता ने काली माता का यह रूप देख कर उन्हें चामुण्डा माता के नाम से पुकारा तब से माता का यह रूप चामुण्डा देवी के नाम से जाना जाता है |
मंदिर का इतिहास
चामुण्डा देवी मंदिर का अपना एक विशेष महत्व है कहा जाता है है इस मंदिर का निर्माण सोलवी सदी में हुआ था | ऐसा माना जाता है कि लगभग 400 साल पहले एक राजा और कुछ ब्राह्मण पुजारी ने मंदिर को एक उचित स्थान पर स्थान्तरित करने के लिए देवी माँ से आज्ञा मांगी थी माता ने एक पुजारी के स्वपन में आकर उन्हें इसकी अनुमति दी उसके उपरांत एक निश्चित स्थान पर खुदाई का काम सुरु किया गया खा जाता है की खुदाई करते समय उन्हें एक प्राचीन चामुण्डा देवी मूर्ति पाई गई थी चामुण्डा देवी मूर्ति को इस एथान पर स्थापित किया गया और उसी रूप को पूजा गया |
मंदिर से जुडी मान्यताए
चामुण्डा देवी मंदिर 51 शक्ति पीठो में से एक है लोग यहा दूर दूर से माता के दर्शन करने के लिए आते है | माता को मंदिर से जुडी बहूत मान्यताये है | की जो भी सच्चे मन से माता के चरणों में अपना शीश झुकता है उसकी हर मनोकामना जरुर पूरी होती है इस मंदिर में शिव भगवानमृत्यो शव विसर्जन और विनाश का रूप लिए साक्षात् चामुण्डा माता के साथ विराजमान है | माता के दर्शन करने के लिए लाखो की संख्या में लोग कोने कोने से आते है | चामुण्डा देवी मंदिर को शिव शक्ति का स्थान माना जाता है | नवरात्रि के अवसर पर यहा पर माता की विशेष पूजा अर्चना होती है |
चामुण्डा देवी मंदिर बहुत बड़ा और भव्य है यहाँ दो मंज़िलें है | जिसमे प्रथम तल पर ही माँ की भव्य मंदिर विराजमान है | माँ के दर्शन के लिए एक हॉल है जहाँ भगत माता के दर्शन के लिए कतार में खड़े रहते है | माता के दरबार में के पीछे गहरी गुफा में शंकर महादेव का मंदिर है जिसके अन्दर एक समय में केवल एक ही व्यक्ति प्रवेश कर सकता है |
पहुचने का मार्ग
आप यह किसी भी तरह से पहुच सकते है रेल द्वारा पंजाब स्थित पठानकोट से पर्यटको के लिए हिमाचल के लिए चलने वाली छोटी रेलगाड़ी के द्वारा सुंदर प्रकर्तिक नजारे देखते हुए मरानडा तक पहुच सकते है जो पालमपुर के पास ही है यह से चामुण्डा देवी मंदिर केवल 30 किलोमीटर दूर स्थित है | आप यह हवाई यात्रा द्वारा भी पहुच सकते है बस द्वारा भी और अपने निजी वाहन के द्वारा भी आप यह आकर माता के दर्शन कर सकते है |
जय चामुण्डा देवी की
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