कहानी
सुरेश जी जो सरकारी विभाग में एक छोटे पद पर कार्यरत थे और एक मिडल क्लास परिवार से सम्बन्ध रखते थे उनकी धर्मपत्नी रीना एक बहुत ही शांत और सुंदर महिला थी वो हर कार्य में निपुण थी | उनकी एक बेटी थी उन्होंने अपनी बेटी रेखा की परवरिश बहुत प्यार से और अच्छे ढंग से की थी | इकलोती होने के कारण वो अपने माँ बाप की बहुत लाडली थी | परन्तु उसका स्वभाव थोड़ा घुसेल था उसे बहुत जल्दी हर बात पर घूसा आ जाता था उसके पिता उसे हमेशा शांत रहने और खुश रहने को कहते थे | रीना पढ़ाई में बहुत अच्छी थी | जब रीना की पढ़ाई पूरी हो गई तो उसके माँ बाप को उसकी शादी चिंता होने लगी | रेखा काफी सुंदर थी और उसके लिए एक से बढ़कर एक रिश्ते आने लगे | परन्तु कही भी बात नही बन पा रही थी | कई पर कुंडली का चक्र तो कही पर दहेज़ की बात के कारण रिश्ता नही हो पा रहा था |
आखिरकार सुरेश जी के विभाग में उन्ही के साथ काम करने वाले उनके एक दोस्त ने अपने बेटे के लिए रेखा का हाथ माँगा सुरेश जी को यह रिश्ता अच्छा लगा क्योंकि सुरेश जी उन्हें और उनके परिवार को बहुत अच्छे तरह से जानते थे | वह रवि को भी अच्छी तरह जानते थे | उन्हें पता था की रवि बहुत ही खुश दिल और शांत स्वभाव का इन्सान है | थोड़े समय बाद ही रवि और रेखा की शादी हो गई | दोनों इस शादी से बहुत खुश थे | दो चार महीने तो उनके घूमने और रिश्तेदारो के यह आने जाने में ही बीत गये |
धीरे धीरे रेखा के स्वभाव में परिवर्तन आने लगा वह छोटी छोटी बातों पर रवि से लड़ाई झगड़ा करने लगी वह बात बात पर रवि से लडती और उसे छोड़ के जाने की बात करती परन्तु रवि एक समझदार लड़का था वह हमेशा रेखा के घुसे को शांत कर लेता और उसे समझता की अब तुम बड़ी हो गई हो अब तुम केवल एक बेटी नहीं अपितु एक बहू एक पत्नी हो | धीरे धीरे रेखा की लड़ाई झगड़ा बढ़ने लगे वह हमेशा रवि को अलग हो जाने के लिए कहती परन्तु रवि को अपने माँ बाप से अलग होना बिलकुल मंज़ूर नहीं था वह हमेशा रेखा को समझाता था की वो उसके माँ बाप है और बुढ़ापे में उनका ध्यान रखना उसका फर्ज़ है वो हमेशा रेखा को समझाता की जो बातें तुम्हें अच्छी नहीं लगती उन्हें तुम एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया करो वो बड़े है हम उन्हें या उनकी सोच को नहीं बदल सकते परन्तु तुम तो पड़ी लिखी हो समझदार हो तुम समझदारी से काम लो | परन्तु रेखा को यह बात बिलकुल अच्छी नहीं लगी | उसका ऐसा बर्ताव देख कर रवि को और उसके परिवार को बहुत दुःख होता था | वह हर तरीके से रेखा को खुश करने की कोशिश करते परन्तु रेखा लड़ने का कोई ना कोई बहाना ढूढ़ ही लेती |
आख़िरकार एक दिन रवि और रेखा में बहुत ज्यादा लड़ाई हो गई और रेखा ने घुसे में आकर अपने घर फोन कर दिया रेखा की माँ ने उसे सब कुछ छोड़ छाड़ कर घर वापिस आने को कहा रेखा के पिता उनकी ये सब बातें सुन रहे थे उन्होंने तुरंत रीना से फोन लिया और रेखा से बात की और उसे कहा की बेटा यह तुम्हारा घर है तुम जब चाहो इस घर में वापिस आ सकती हो परन्तु क्या तुम यहाँ आकर खुश रहोगी क्या तुम रवि के बिना जी पाओगी कल को जब हम इस दुनिया में नहीं रहगे तब कोन तुम्हारा साथ देगा | बेटा ये शादी तुम्हारी केवल रवि से ही नहीं हुई बल्कि यह शादी दो परिवारों के बीच हुई है अगर तुम्हे कोई समस्या लग रही है तो उसका हल ढूढो ना की उस समस्या से भागों घर छोड़ कर आ जाना किसी भी इस समस्या का हल नहीं होता हर समस्या का समाधान सोच समझकर बात करके निकाला जा सकता है हर रिश्ता भरोसे और विश्वास पर टीका होता है रेखा के पिता द्वारा की गई सारी बातें रेखा ने ठन्डे दिमाग से सुनी रेखा को अपने पिता द्वारा दी गई सिख समझ आ गई और उसने अपने पिता की दी हुई शिक्षा पर अमल किया और अब रेखा और रवि ख़ुशी ख़ुशी अपने परिवार के साथ जीवन बिताने लगे |
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