नमस्कार दोस्तों ,
हिमाचल एक सुंदर और हरा भरा देश है | जहाँ चारों और ऊँची सुंदर पहाड़ियों और कल कल करती नदियों हरे भरे खेत और ऊँची चोटियों पर स्थित सुंदर मंदिर जिन्हें देखते ही मन उनकी और आकर्षित हो जाता है | आज में आपको इसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रही हुं यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के एक सुंदर जिले कांगड़ा में स्थित है | माता का यह मंदिर कांगड़ा के बनखंडी गाव में स्थित है | यह मंदिर बगलामुखी माता के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है हिन्दू पुराणिक कथाओं के अनुसार माता बगुलामुखी को दस महाविद्याओ में से आठवां स्थान प्राप्त है | कहा जाता है की माता हल्दी रंग से प्रकट हुई थी माता का रंग पीले सोने के समान था इसीलिए माता का एक नाम पीताम्बरी है माता को पीला रंग अति प्रिय है यही कारण है की माता के पूजन में पीले रंग की ही सामग्री का प्रयोग किया जाता है | एक अन्य मानता के अनुसार माता बगुलामुखी का पादुर्भाव भगवान विष्णु जी से संबंधित है | जिसके फलस्वरूप माता सतगुन संपन्न है |
प्रवेश द्वार |
इनके कई स्वरूप हैं। कहते हैं कि देवी बगलामुखी, समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय द्वीप में अमूल्य रत्नों से सुसज्जित सिंहासन पर विराजमान हैं। देवी त्रिनेत्रा हैं, मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती है, पीले शारीरिक वर्ण युक्त है, देवी ने पीला वस्त्र तथा पीले फूलों की माला धारण की हुई है। देवी के अन्य आभूषण भी पीले रंग के ही हैं तथा अमूल्य रत्नों से जड़ित हैं। देवी, विशेषकर चंपा फूल, हल्दी की गांठ इत्यादि पीले रंग से सम्बंधित तत्वों की माला धारण करती हैं। यह रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं।
देवी बगुलामुखी देखने में मनोहर तथा मंद मुस्कान वाली हैं। एक युवती के जैसी शारीरिक गठन वाली देवी ने अपने बाएं हाथ से शत्रु या दैत्य के जिह्वा को पकड़ कर खींच रखा है तथा दाएं हाथ से गदा उठाए हुए हैं, जिससे शत्रु अत्यंत भयभीत हो रहा है। देवी के इस जिव्हा पकड़ने का तात्पर्य यह है कि देवी वाक् शक्ति देने और लेने के लिए पूजी जाती हैं। कई स्थानों में देवी ने मृत शरीर या शव को अपना आसन बना रखा है तथा शव पर ही आरूढ़ हैं तथा दैत्य या शत्रु की जिह्वा को पकड़ रखा हैं।
माता बगुलामुखी का मंदिर |
माता बगुलामुखी माता की उत्पति की कथा
पुराणिक कथाओं के अनुसार माता बगुलामुखी की उत्पति भगवान ब्रह्मा जी के अराधना करने पर हुई थी | कहा जाता है की ब्रह्मा जी जो इस जगत के रचियता है उनका ग्रन्थ एक राक्षस चुरा के ले गया और उसने यह ग्रन्थ पाताल में जाकर छिपा दिया | कहा जाता है की उस राक्षस को यह वरदान प्राप्त था की कोई भी देवता या इन्सान उसे पानी के अंदर नहीं मार सकता था | ऐसे में भगवान ने माता भगवती की स्तुति की | माता ने बगुले का रूप धारण किया और पाताल में जाकर उस राक्षस का वध कर ब्रह्मा जी का ग्रन्थ उन्हें वपिस किया माता के इस रूप को बगुलामुखी माता के नाम से पुकारा गया | और ऐसे बगुलामुखी माता की उत्पति हुई |
कहा जाता है की बगुलामुखी माता रावण की इष्ट देवी भी थी | कहा जाता है की त्रेता युग में जब भगवान् राम और रावण के बीच में युद्ध हुआ था तो रावण ने उस युद्ध ने विजय होने के लिए बगुलामुखी माता की आराधना की थी | कहा जाता है की जब इस बात का पता भगवान् राम को इस बात का पता चला तो उन्होंने भी माता की आराधना की थी |
मंदिर की स्थापना
कहा जाता है की इस मंदिर की स्थापना महाभारत के समय की मानी जाती है | इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों ने अपने अज्ञात वास में एक ही रात में की थी | कहा जाता है की जब पांडवों का कोरवो के साथ युद्ध हुआ था तो पांडवों ने युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए माता की आराधना की थी | सर्वप्रथम अर्जुन और भीम शक्तिया प्राप्त करने के लिए माता बगुलामुखी की आराधना की थी |
इस मंदिर के साथ ही एक शिव लिंग की स्थापना भी की हुई है जहाँ पर भगत जन माता के दर्शन करने के बाद शिव लिंग पर जल का अभिषेक करते है | कहा जाता है की पुरानी पांडुलिपियों में माता के जिस रूप का वर्णन हुआ है माता उसी रूप में यह पर विराजमान है
कहा जाता है की माता बगुलामुखी की उपासना करने से बुरी शक्तियों का नाश होता है | माता की कृपा हमेशा उस पर बनी रहती है | माता बगुलामुखी ब्रह्मांड में स्थित जितनी भी शक्तिया है माता उन सभी शक्तियों का समावेश है | कहा जाता है की माता की उपासना करने वाले भगतो को उपासना के दोरान पीले वस्त्र और पूजा के लिए पीली समाग्रियो का इस्तेमाल करना चाहिए |
जै माता दी
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1 टिप्पणियाँ
Nice 🙂
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