जिन्दगी

                                               कहानी

विक्रम एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखता था | उसके पिता एक ग़रीब किसान थे वो सारा दिन खेत में खूब मेहनत किया करते थे | विक्रम ने बड़े मुश्किल से अपनी पढ़ाई पूरी की थी | उसके पिता हमेशा से चाहते थे की वह भी पढ़ाई पूरी करके उनके खेती के काम में उनकी मदद करे परन्तु विक्रम अपनी जिन्दगी अपनी मर्ज़ी से बिताना चाहता था | इसलिए जैसे ही विक्रम की पढ़ाई पूरी हुई  वह नौकरी करने शहर आ गया उसने एक अच्छी कम्पनी में नौकरी कर ली वह अपनी जिन्दगी एक अच्छे ढंग से जीना चाहता था |  धीरे धीरे वह नौकरी में तरकी करने लग गया | सीमा जो उसी की कम्पनी में उसकी कुलिक थी | उनकी आपस में अच्छी दोस्ती हो गई ओर धीरे धीरे उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई और जल्द ही उन्होंने शादी कर ली | और जल्द ही वह एक बेटे का पिता भी बन गया | विक्रम का शुरू से एक ही ख़्वाब था की वह अपना एक आलीशान सा घर बनाए और नौकरी से बर्खास्त होने के बाद चैन से अपनी बीवी के साथ घंटो बंगीचे में बैठ कर आपस में बातें करते हुए अपना बुढ़ापा बिताए | इसलिए उन्होंने अपने बेटे को पढ़ा लिखा कर नौकरी लगा कर उसकी शादी उसकी ही पसन्द की लड़की से करवा दी और वो दोनों नौकरी करने के लिए दूसरे शहर में रहने लगे  |




 विक्रम भी नौकरी से रिटायार हो गया वह दोनों पति पत्नी घंटो अपने घर के बंगीचे में समय बिताने लगे | कुछ समय बाद विक्रम के बहु बेटे  भी उन्ही के साथ रहने के लिए आ गये | विक्रम की बहु रीना भी अपने पति के साथ उसी के कम्पनी में काम करती थी उसी के कहने पर विक्रम का बेटा अपने माता पिता के साथ रहने उनके घर आ गया था  | वह सोचती थी की जब उनका अपना घर है और घर पर काम करने के लिए उसकी सास है तो वो क्यों अलग किराए के घर में रह कर अपने पैसे खर्च करे हम दोनों पति पत्नी मजे से बहार काम करेंगे और घर जा कर मजे से आराम किया करेंगे  पर विक्रम चाहता था की वो और उसकी पत्नी अब अपने बुढ़ापे का आनन्द ले क्योंकि सारी उम्र उन्होंने काम करने और पैसा कमाने में लगा दी है और उसकी पत्नी सीमा ने हर मोड़ पर उसका पूरा साथ दिया है | इसलिए विक्रम चाहता था की अब उसकी पत्नी भी ज्यादा से ज्यादा समय उसके साथ बैठे और आराम करे परन्तु स्नेहा अपनी सास सीमा को एक नोकरानी से ज्यादा कुछ नही समझती थी | वो अक्सर उसे अपना कुछ न कुछ काम करने को कहती रहती थी कई बार विक्रम उसे समझता था की तुम इस घर की मालकिन हो नोकरानी नही और तुम भूल जाती हो की तुम उसकी सास हो और वो बहु है उसका काम है हमारी सेवा करना पर सीमा उसकी बात हमेशा हंसी में टाल देती थी वो अक्सर कहती घर का काम करने में किस बात की शर्म | विक्रम का बेटा भी अपने माँ बाप के हर काम में दखल देने लग गया था वो अक्सर अपने बाप के ख़र्चों पर उन्हें कुछ ना कुछ सुनाता रहता था बेटे को देख कर बहू भी अपनी सास को कुछ न कुछ ताने मारती ही रहती थी एक दिन विक्रम की बहू स्नेहा फोन पर अपनी माँ से बात कर रही थी और उसे घर की  सारी बातें बता रही थी की किस तरह वो अपना किराये का घर छोड़ कर अपने सास ससुर के घर पर आ गई है और मजे से अब अपना जीवन बिता रही है  और आगे कैसे वो इस घर को अपने नाम करवाकर अपने सास ससुर को इस घर से निकाल कर किसी वृद आश्रम में छोड़कर खुद मजे से इस घर पर राज करेगी | कैसे गाड़ी लेंगे और अपने ससुर द्वारा बनाए गये सुंदर बंगीचे को तोड़ कर उसका गेरज बना देंगे  विक्रम अपनी बहू की सारी चलाकियो को समझ गया था | अत उसने उन्हें सबक सिखाने और अपने घर से बाहर निकलने के बारे में सोचा विक्रम एक पड़ा लिखा और एक अच्छा इन्सान था वो भावुक दिल का नही बल्कि समझदार इन्सान था उसे पता था की कितने मेहनत से उसने और उसकी पत्नी ने अपना ये घर बनवाया था अत वो किसी को भी अपने इस घर पर कब्ज़ा नही करने देना चाहता था | फिर चाहे वो उसके खुद के बहू और बेटा ही क्यों ना हो | अगले दिन रोज़ की तरह ही विक्रम और उसकी पत्नी सीमा सुबह की शेर के लिए गए और आते हुए मोहले के कुछ बच्चों के साथ बात  करने लग गये | स्नेहा उठ कर अपनी सास को आवाज़े मारने लग पड़ी की जल्दी से मेरे लिए चाय लेकर आओ जब काफी देर इंतजार करने पर भी कोई चाय लेकर नही आया तो वो घुसे में तिल मिलाते हुए  अपने पति को लेकर बहार कमरे में आई जब वह पर भी कोई नही मिला तो वो दोनों बहार आकर अपने माता पिता को मोहलो के बच्चों के साथ हँसते और  बातें करते देखने लगे जब विक्रम और सीमा घर आयें तो दरवाज़े पर ही स्नेहा और उसका पति विक्रम और सीमा पर चिल्लाने लग पड़े की ये क्या आपकी उम्र है मोहले के बच्चों के साथ हँसने बोलने की आपको अपने उम्र के लोगो के साथ बोलना चाहिए अपने तो पुरे मोहले में हमारी नाक कटा रखी है | स्नेहा भी कहा पीछे रहने वाली थी वो भी जोर जोर से उन पर बरस पड़ी की मेरे तो दोस्त भी अब मेरा मज़ाक उड़ाते है की तेरे सास ससुर तो जवान लोगो की तरह मजे से बंगीचे में झूले पर बैठ के एक दूसरे के हाथों में हाथ लिए बैठे रहते है | अब आप बूढ़े हो गए हो आपको तो अपने साथ के बूढ़े लोगो के साथ समय बिताना चाहिए और पूजा पाठ में अपना समय बिताना चाहिए | यह कह कर वो दोनों तैयार होकर अपने ऑफ़िस चले गये | शाम को  जब विक्रम के बहू बेटा ऑफिस से वापिस आये तो उन्होंने देखा की घर में तो बहुत से लोग आये हुए है और खूब पूजा पाठ हो रहा है यह देख कर विक्रम का बेटा कहना लगा ये सब मेरे घर में क्या हो रहा है | आपको पता नही की हम इतना थक कर घर आये है यह सब बंद कीजिए | विक्रम ने कहा की तुमने ही तो कहा था की अब हमे पूजा पाठ में अपना समय बिताना चाहिए वो ही तो हम कर रहे है और ये घर मेरा है तुम्हारा नही ये मैने अपनी मेहनत की कमाई से बनाया है | और हाँ कल मेरे कुछ दोस्त यहाँ रहने आ रहे है तो स्नेहा ने कहा की यहाँ कहा आ रहे है और वो कहा रहगे यहा तो बस दो ही कमरे है जिसमे से एक कमरे में आप और एक में हम रहते  है | तो आपके दोस्त कहा रहेगे विक्रम ने कहा की वो तुम्हारे कमरे में रहेगे स्नेह ने कहा तो हम कहा सोयेगे विक्रम ने मुस्कुराते हुए कहा बेटा ये घर मैने और तुम्हारी सास ने अपने पेसो से बनवाया है और ये हमारा घर है जिस पर तुम्हारा कोई हक नही है और तुम ने तो कहा था की हमे अपने उम्र के लोगो के साथ रहना चाहिए तो वो ही हम कर रहे है  | इसलिए  अब तुम अपने घर जाओ | ये सुनते ही दोनों के मुँह छोटे हो गए उन्हें अपनी ग़लती का एहसास हुआ पर अब काफी देर हो चुकी थी और वो अपना सामान लेकर चले गए |

     बुढ़ापे में हमे अपने माता पिता की सेवा करनी चाहिए | हमे उनका सहारा बना चाहिए ना की उन्हें अपने कामयाबी की सीडी बनाना चाहिए |

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