बाबा बालकनाथ जी

नमस्कार दोस्तों ,
                                आज में फिर एक नया ब्लॉग लेकर आई हुं | आज में आपको हिमाचल प्रदेश के ज़िला हमीरपुर में स्थित पूजनीय स्थल बाबा बालकनाथ जी के बारे में बताने जा रही हुं | बाबा बालकनाथ जी कई के अराध्य देव है | बाबा बालकनाथ जी ज्यादातर हिमाचल,पंजाब, दिल्ली में रहने वाले कई मनुष्य के आराध्य देव हैं । इनका मुख्य स्थान हमीरपुर में स्थित है जिसे सब  दयोठसिद्ध के नाम से जानते है | यहाँ मंदिर हमीरपुर के चकमोह गाँव की एक ऊँची चोटी पर स्थित है | यह मंदिर बहूत सुंदर और भव्य है | इस मंदिर में एक  प्राक्रतिक गुफा भी है | माना जाता है की यही वह स्थान है जहा बाबा बालकनाथ जी रहा करते थे | 


बाबा बालकनाथ मंदिर 

बाबा बालकनाथ के जन्म की कहानी 

                           बाबा बालकनाथ के जन्म को लेकर काफी कहानियाँ प्रचलित है | परन्तु ऐसा माना जाता है की बाबा बालकनाथ जी का जन्म लगभग 700 साल पहले 2 जून को गुजरात के एक गाँव में त्रयोदसी को  हुआ था | उनका बचपन का नाम देव था उनकी माता का नाम लक्ष्मी और पिता का नाम वैष्णो था | बचपन से ही बाबा जी का ध्यान पूरी तरह से आध्यात्मिकता में ही लीन था | यह देखकर उनके माता पिता को उनकी बहुत चिंता होती थी | यह सब देखकर उनके माता पिता ने उनका विवाह  करने का निश्चय किया परन्तु बाबा जी को उनकी ये बात ठीक नही लगी और उन्होंने अपना घर छोड़ कर परम सिद्धि प्राप्त करने का निश्चय किया | यही सोच कर वो घर से निकल गये चलते चलते वह जूनागढ़ की पहाड़ी गिरनार में स्वामी दतात्रेय से मिले और वही पर उन्होंने स्वामी दतात्रेय  से सिद्धि की बुनियादी शिक्षा ग्रहण करी और सिद्ध बाबा बने और वही से बाबा जी को  बाबा बालकनाथ जी के नाम से जाना जाने लगा | 

बाबा जी के जन्म से सम्बंधित एक और मान्यता भी है ;-

                           कहा जाता है की शुकदेव मुनि का जब जन्म हुआ था उसी समय 84 सिद्धो ने विभिन्न स्थानों और जन्म लिया था इनमें सर्वोच्च सिद्ध बाबा बालकनाथ गुरु दतात्रेय के शिष्य थे | ऐतिहासिक संदर्भ में नवनाथो और 84 सिद्धो का समय आठवीं से 12वी सदी के बीच माना जाता है | 

इस धरती पर बाबा जी के होने के साक्षात्कार                 

                              बाबा जी के इस धरती पर आने के दो साक्ष्य आज भी मौजूद है जो आज भी उनके यहाँ उपस्थित होने का प्रणाम है |

 1.पहला परिणाम है वो गरुण का पेड़ जो शाहतलाई में मौजूद है | कहा जाता है की इसी पेड़ के नीचे बेठ कर कई वर्षो तक बाबा जी ने तपस्या की थी |

2. दूसरा  परिणाम है एक पुराना पुलिस स्टेशन जो हमीरपुर के ही एक गाँव बड़सर नामक जगह  पर स्थित है | जहाँ उस समय उन गाँव की गायो को रखा गया  था जिन्होंने गाँव में लगी फसले खराब कर दी थी | इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है |

कहानी ;-  

                 कहा जाता है की कि एक गाँव में एक महिला रहती थी जिसका नाम रत्नों था जिन्होंने बाबा बालकनाथ जी को अपनी गायों की रखवाली करने के लिए रखा हुआ था जिसके बदले में रत्नों बाबा बालकनाथ जी को रोटी और लस्सी दिया करती थी | परन्तु बाबा जी अपनी तपस्या में इतने लीन रहा करते थे की उनके पास इतना समय भी नही था की वो रत्नों के द्वारा दिए गये खाने को खा सके | कहा जाता है की एक दिन जब बाबा जी गायों को चराने के लिए गये तो वो वह जाकर अपनी तपस्या में लीन हो गये और उसी दौरान सारी गाय जाकर खेत में घुस गई और उन्होंने सारी फसलो को खराब कर दिया | यह सब देखकर खेत का मालिक वह आ गया और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा यह देख कर रत्नों भी बाबा जी को भला बुरा कहने लग पड़ी की मैने तुझे रोज रोटियाँ खिलाई और लस्सी पिलाई परन्तु फिर भी तुमसे मेरी गायों को ढंग से चराया नही गया रत्नों का इतना कहना था की बाबा जी ने पेड़ के तने पर ज़ोर से अपना चिमटा मारा और तभी रत्नों द्वारा दी गई सभी रोटियाँ  और लस्सी उस तने से बहार निकल कर जमींन पर गिर गई उसके बाद बाबा जी एक गुफा में जाकर अन्तर ध्यान  हो गये | 

मंदिर की गुफा में महिलाओ के जाने पर है पाबंदी      

        मंदिर की गुफा में महिलाओ के जाने पर पूर्ण पाबंदी है कहा जाता है की बाबा बालकनाथ जी ने पूरी उम्र ब्रहमचार्य तप का पालन किया है इसी बात को ध्यान में रखते हुए उनकी गर्भ गुफा जहा पर बाबा जी तपस्या करते हे अन्तर ध्यान हो गए थे उस गुफा में महिलाओ को जाने की आज्ञा नही है |

 बाबा जी का बाबा बालकनाथ पढने के पीछे की कहानी ;-

                          कहा जाता है की द्वापर युग में जब बाबा बालकनाथ जी का जन्म हुआ था उस समय उनका नाम महाकोल था | उस समय भी वह शिव भगवान जी के बहुत बड़े भगत थे | एक बार जब वह शिव भगवान् जी से मिलने कैलाश पर्वत जा रहे थे | तब जाते हुए उनकी मुलाकात एक वृद्ध स्त्री से हुई | उसने उनसे कैलाश जाने के पीछे उनकी मनसा पूछी |  जब उस वृद स्त्री को बाबा जी के कैलाश जाने के पीछे की मनसा पता चली तो उसने उन्हें मानसरोवर नदी के किनारे तपस्या करने की सलाह दी और माता पार्वती से उन तक पहुचने का उपाय पूछने के लिए कहा जो अक्सर उस सरोवर के किनारे स्नान करने के लिए आती थी | बाबाजी ने बिलकुल ऐसा ही किया और वह अपने उद्देश्य में कामयाब भी रहे बालयोगी महाकोल को देखकर शिवजी भगवान बहुत खुश हुए और उन्होंने उन्हें हमेशा पूजे जाने का वरदान दिया और चिर आयो तक उनकी छवि को बालक की छवि के तोर पर बने रहने का आशीर्वाद दिया और तभी से उनके बालक रूप के कारण ही उनका नाम बाबा बालकनाथ जी पड़ा |

                           कहा जाता है की बाबा जी का जन्म हर युग में हुआ है चाहे वह द्वापर युग हो त्रेता युग या द्वापर युग हो हर एक युग में उनके अलग अलग नाम हुए है परन्तु अपने हर अवतार में उन्होंने गरीबो की सहायता करके उनके दुःख दर्द को दूर किया हर एक जन्म ने उन्होंने शिव की भक्ति की और उनके बड़े भगत कहलाये |

                                बाबा बालकनाथ जी के मंदिर में भगतो की हमेशा बहुत भीड़ लगी रहती है मंदिर में बाबा जी की एक मूर्ति स्थापित है | बाबा जी को प्रसाद के रूप में  रोट चढ़ा या जाता है | मंदिर में बाबा जी को बकरा भी चढ़ाया जाता है  यह भगतो का बाबा की तरफ प्रेम का प्रतीक है परन्तु बकरे की बलि नहीं चढ़ाई जाती अपितु उन्हें बहुत ही प्रेम से उनका पालन पोषण किया जाता है | जैसे की आपको पता है की बाबा जी के गुफा में स्त्रियों का जाना मना है | परन्तु उनके दर्शन के लिए गुफा के एक दम सामने एक ऊँचा चबूतरा बना हुआ है जहाँ से वो बाबा जी के दर्शन कर सकती है | मंदिर से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर शाहतलाई स्थित है जिसके दर्शन करने के लिए भगत ज़रुर जाते है ऐसा माना जाता है की इसी स्थान पर  बाबा जी  ध्यानयोग किया करते थे | 

                             हमे उम्मीद है की हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी | यदि आप इसके बारे में और अधिक जानना चाहते हैं या फिर किसी और मंदिर या जगह की जानकारी लेना चाहते है तो कृपया कोमेंट बॉक्स में लिखे यदि  इस आलेख को लिखते हुए हमसे कोई ग़लती हुई हो तो उसके लिए हमे क्षमा करे और हमे कोमेंट करके ज़रुर बताए ताकि हम आपको अपने आने वाले आलेख में एक बहेतरिन सुधर के साथ आपको अच्छी जानकारी उपलब्ध कराए |

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