हाटेशवरी माता मन्दिर हाटकोटि

 नमस्कार दोस्तों,

                                     आज में आपको एक ऐसे स्थान के बारे में बताने जा रही हूं । जो लगभग 700 -800 साल पुराना है।  यह मंदिर जुब्बल तहसील के कोटखाई में स्थित माता हाटेशवरी स्थित बहुत ही प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर पब्बर नदी के किनारे स्थित हैं । इस मंदिर का निर्माण मूलरुप से शिखराकार नागर शैली से किया गया है। इस मंदिर के दक्षिण में चार छोटे शिखर है जो इसी शैली द्वारा बनाए गए है । परन्तु बाद में इसमे कुछ मरम्मत का काम शुरू किया गया और एक श्रद्धालो द्वारा इस मंदिर की मुरमत करते समय उसने इसकी शैली में परिवर्तन कर दिया और इसे पहाड़ी शैली के रूप मे परिवर्तन कर दिया । मुख्य रूप से यह मंदिर अर्धनारीश्वरी मंदिर का एक अंग माना जाता हैं । माता के मंदिर में तांबे का घडा, शिव मंदिर, ओर पत्थरो से बनाये गए पाँच पांडव की मुर्तिया आज भी विराजमान हैं ।


हाटकोटि माता का मंदिर 


इस मंदिर से जुड़ी पुराणिक कथा के अनुसार             

                                 माना जाता हैं कि यह कि इस लोक गाथा है जिसके अनुसार कहा जाता हैं कि काफी समय पहले एक ब्राह्मण परिवार था जिसमें दो बहने रहती थीं । वह बहुत ही धार्मिक विचारो की थी और उन्होंने बहुत ही छोटी उम्र मे सन्यास ले लिया था । और इसी कारण उन्होंने अपना घर भी छोड़ दिया था । उन्होंने एक संकल्प लिया कि वह गांव गांव जाएंगी और लोगों के दुख दर्द सुन कर इन्हें दूर करने का प्रयास करेगी । इसीलिए एक बहन गांव गांव भ्रमण करने लगी और दूसरी बहन हार्ट्कोटि नाम के गांव में पहुँची वह पहुंच कर उसने एक खेत मे अपना आसन बनाया और भगवान का ध्यान करते हुए अंतर्ध्यान हो गई । और कुछ समय बाद उसी स्थान पर लुप्त हो गई । और कुछ समय बाद उसी स्थान से एक मूर्ति प्रकट हुई । जब वहाँ के लोगों को इस बारे में पता चला तो उन्होंने इस बात की जानकारी उन्होंने जुब्बल रियासत के राजा को दी । सारी बात सुनकर राजा भी उस मूर्ति के दर्शन करने के लिए वहाँ पहुंचे ।और उन्होंने यह निश्चय किया कि वह इस प्रतिमा के चरणों मैं सोना चढ़ायेंग जैसे ही सोना चढ़ाने के लिए उस स्थान पर खुदाई शुरू की तो वह पूरा स्थान दूध से भर गया । इस घटना से राजा ने वह मंदिर बनाने का निश्चय किया । लोगों ने उस कन्या को देवी रूप में पूजना शुरू कर दिया और उस गांव के नाम पर ही उस देवी का नाम हाटेशवरी रखा । 

                        हाटकोटी माता के इस मंदिर को महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता हैं । कहा  जाता हैं कि हाटेशवरी माता ने ही महिसासुर राक्षस का वध किया था । माता के इस मंदिर मे शिल्पकला , वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूनों के साक्षात दर्शन होते है । पोराणिक मान्यताओं के अनुसार पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय यहाँ पर बिताया था । जिसके परिणाम आज भी वहाँ मिलते है । एक और मान्यता के अनुसार यहां भी कहा जाता हैं कि माता की मूर्ति को ले जाने नेपाल से राजा आया था उसने माता की मूर्ति को ले जाने की बहुत कोशिश की परन्तु वह माता की मूर्ति को अपने साथ ले जाने में असफल रहा अंत मे उसने हार मान ली औऱ अपने राज्य वापिस लौट गया ।


मंदिर


       एक अन्य कहानी के अनुसार यह माना जाता हैं कि  माता का एक पैर पाताल लोक तक है जिसका पता आज तक कोई भी नहीं लगा पाया है । 

मंदिर 

           मंदिर के प्रवेश द्वार पर बाई और एक बड़ा ताम्र कलश है जिसे बड़ी बड़ी लोहे की जंजीरों से बांध कर रखा गया है | जिसे वहा के लोग स्थानीय भाषा में चरू कहते है || वह की लोगो की मान्यता है की सावन के महीने में जब पब्बर नदी में बाढ आ जाती है तो मंदिर में रखा यह चरु जोर जोर से सीटियों की आवाजें निकलता है और नदी के साथ उस मंदिर से भागने का प्रयास करता है | माना जाता है की यहाँ पर मंदिर के दोनों और दो चरु थे एक चरु नदी के वेग से बह गया और एक चरु को  वह के पुजारी ने पकड़ लिया और उस बाँध कर  जजीरो से बाँध दिया |यह चरु यह कर पहाड़ी मंदिरों में कई जगह देखने को मिल जाता है | माना जाता है की इसे यज्ञ में ब्रह्मा भोज के लिए बनाये गये हलवे को रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था 

                  इस मंदिर को लेकर बहुत सी मान्यतायें है । कहा जाता हैं कि यह माता सभी रोगों का नाश करती हैं जो भी सच्चे मन से माता के चरणों में अपना शीश झुकाता है उसके माता सभी रोग दूर करती हैं । हर वर्ष लाखों की संख्या में सेलानी यह आते है और माता के मंदिर के दर्शन करते है यह पहुँच कर आपको एक अदभुत शांति का एहसास होता है | 

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                                                                         जय माता दी 

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