बैजनाथ मंदिर

 नमस्कार दोस्तों,

                           आज में फिर आपके लिए एक नया ब्लॉग लेकर आई हूं । सभी जानते है कि हिमाचल प्रदेश का दूसरा नाम देव भूमि है ।क्योंकि यह पर सबसे अधिक मंदिर है । और सभी की अपनी कहानी और अपनी अपनी मान्यतायें है । आज में आपको एक ऐसे ही एक पावन स्थल के बारे में बताने जा रही हूं । यह पावन स्थल है बैजनाथ । 


बैजनाथ मन्दिर
                         
                                    यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में पालमपुर नामक जगह पर स्थित हैं। यह मंदिर हिन्दू देवता भगवान शिव को समर्पित हैं। इस मंदिर का निर्माण 1204 ईस्वी में दो क्षेत्रीय व्यपारियो ने करवाया था जिनका नाम अहुक और मन्युक था । इस मंदिर की शहर से दूरी लगभग 16 किलोमीटर की है । इस मंदिर का निर्माण बहुत ही सुंदर ढंग से किया गया है । यह मंदिर चारों और से ऊंची ऊँची पत्थर की दीवारों से घिरा हुआ है । इसकी संरचना बहुत ही आकर्षक ढंग से की हुई हैं इस मंदिर के गर्भ ग्रह में प्रवेश करने के लिए एक ड्योढ़ी से होकर गुजरना पड़ता हैं। जिसके ठीक सामने एक बहुत बड़ा मण्डप बना हुआ है। मण्डप के अग्र भाग में चार स्तंभों पर टीका एक छोटा सा आंगन है जिसके ठीक सामने पत्थर पर बने एक मंदिर के नीचे एक बड़े से नंदी बैल की मूर्ति स्थापित है। मंदिर की बाहरी तरफ स्थित दीवारों पर कई देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित है । और कई दीवारों पर नक्काशी करके चित्र बनाये गये हैं। जैसे ही आप मंदिर के अंदर प्रवेश करते है आप इसकी सुंदरता और शांत वातावरण में खो जायेंगे ।

बैजनाथ मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा 

                            कहा जाता हैं कि त्रेतायुग में राजा रावण जो शिव भगवान के बहुत बड़े भगत थे उन्होंने तपस्या की थी । परन्तु जब काफी समय तक तपस्या करने के बाद भी उन्हें कोई फल नही मिला तो उन्होंने बहुत ही कठिन तपस्या आरंभ की परन्तु जब उन्होंने देखा कि अभी भी भगवान उनसे प्रसन्न नही हुए तो अंत मे उन्होंने अपना एक एक सिर काट कर हवन कुंड में डालना शुरू कर दिया और भगवान शिव को समर्पित करना शुरू कर दिया जब रावण ने अपना अंतिम सिर काटने के लिए आगे किया उसी समय भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने रावण का हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया भगवान शिव ने प्रसन्न होकर रावण के सभी सिरों को पुनःस्थापित कर वर मांगने के लिए कहा । रावण ने बड़े ही विनम्र होकर कहा हे प्रभु में आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूँ। आप दो भागों में अपना स्वरूप मुझे दे और मुझे अत्यंत बलशाली बना दे । शिवजी भगवान ने उसे तथास्तु कह कर अपने शिवलिंग रूपी दो चिह्न रावण को देते हुए कहा कि इन्हें लंका पहुँचने से पहले ज़मीन पर बिलकुल मत रखना और यह कर शिव भगवान वही लुप्त हो गए । 

                              रावण दोनों शिवलिंग लेकर लंका की औऱ चल दिया रास्ते मे जब वह बैजनाथ पहुँचा तो उसे लघुशंका का अनुभव हुआ वह खुद को रोक नही सकता था तभी उसे बैजू नाम का एक गवाल मिला रावण ने उसे सारी बात समझा कर शिवलिंग उसे थमा दिए और खुद जंगल की और भागा । परन्तु बैजू ग्वाले के लिए उन शिवलिंगों का भार सम्भाल पाना मुश्किल था अतः वह अधिक देर तक उन्हें पकड कर नही रख सका। उसने दोनों शिवलिंग वही धरती पर रख कर अपने पशुओं को चराने वहां से चला गया । इस तरह दोनो शिवलिंग वही स्थापित हो गए। जिस तरह से रावण ने वह शिवलिंग रखे थे उस तरह से सामने वाले शिवलिंग का नाम चंद्रभान पड़ा ओर पीठ की तरफ रखा हुआ शिवलिंग बैजनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


बैजनाथ मंदिर 

पांडव इस मंदिर का निर्माण पूरा नहीं कर पाए ।

                                      माना जाता हैं कि द्वापर युग में जब पाण्डव अपना अज्ञात वास काट रहे थे तब उस समय के दौरान उन्होंने इस मंदिर का निर्माण कराया था । वहा पर रहने वाले स्थानीय लोगों के अनुसार वह इस मंदिर का निर्माण पूरा नहीं करा पाए फिर इस मंदिर का अधूरा काम आहुक ओर मनुक नाम के दो व्यपारियो ने 1204 ईस्वी में पूर्ण करवाया । उसी समय से यह शिव धाम पुरे विश्व में प्रसिद्ध हैं ।

बैजनाथ से जुड़ी एक ओर कहानी भी है।

                                    एक मान्यता के अनुसार शिव नगरी कहे जाने वाले बैजनाथ में कोई भी सोना बेचने वाले दुकानदार की दुकान नही है यह बहुत आश्चर्य की बात है परंतु यह बात सत्य है । इसके विपरीत पपरोला में स्वर्ण आभूषणों का काफी अच्छा कारोबार होता हैं । लोगों के अनुसार यह बात भी रावण की लंका से ही जुड़ी हुई हैं । कहा जाता हैं कि जब भी किसी ने यह पर कोई सोने की दुकान खोलने की कोशिश की तो उस दुकान में अपने आप हो अचानक आग लग जाती हैं।

   बैजनाथ में कभी दशहरा नही मनाया जाता है ।

                                बैजनाथ से जुड़ी एक ओर ख़ास बात यह भी है कि इस स्थान पर कभी दशहरा का पर्व नही मनाया जाता है । कहा जाता हैं कि रावण शिव भगवान जी के प्रिय भगत थे यही कारण है कि बैजनाथ में दशहरा नही मनाया जाता । कहते हैं कि एक बार कुछ स्थानीय लोगों ने यहाँ दशहरा मनाने की कोशिश की थी और रावण का पुतला भी जलाया था परन्तु इसके बाद उन आयोजकों तथा उनके परिवारों को इसका परिणाम भी झेलना पड़ा जिसके बाद किसी ने भी दोबारा यहां दशहरा मनाने की कोशिश नही की ।

                       इस मंदिर के नज़दीक और भी कई शिव भगवान के मंदिर बने हुए हैं । कहा जाता हैं कि इस मंदिर की चारों दिशाओं में भगवान शिव के अनेकों रूपों के कई शिव मंदिर बने हुए हैं । 

 हर वर्ष लाखों की संख्या में शिव भगत यह प्रभु के दर्शन करने के लिए यह आते है । यह प्रसिद्ध मंदिर चामुंडा देवी मंदिर से केवल 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। इस मंदिर में ना केवल भारत से बल्कि विदेशों से भी कई पर्यटक भगवान शिव के दर्शन करने के लिए हर वर्ष आता है ।


शिव मन्दिर

यहाँ तक कैसे पहुंचा जाए

                     आप यहां पर रेलगाड़ी , बस या हवाई मार्ग से भी पहुँच सकते है आप यहाँ अपने निजी वाहनो द्वारा भी आराम आए पहुंच सकते है आप यहां तक पहुंचने के लिए दिल्ली से पठानकोट या चंडीगढ़ - ऊना होते हुए बस या रेलमार्ग से पहुँच सकते है।

                  यह पर रहने के लिए भी कई अच्छी व्यवस्थाए की गई हैं आप यहाँ की धर्मशाला में भी रुक सकते है और चाहे तो होटल में भी रुक सकते है ।

                                                                                                     जय शिव शंकर

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                                                                                      धन्यवाद

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