नमस्कार दोस्तों.
आज में फिर आपके पास एक नए ब्लॉग के साथ आई हु सभी जानते है कि हिमाचल देवी देवताओं कि भूमि है प्राचीन समय से ही हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है । हर साल कई सैलानी यहाँ पर खास कर प्राचीन समय के बने सूंदर मंदिरो और उसमें कि गई भव्य अलौकिक कि गई नकाशी को देखने के लिए आते है जितने पुराने यहाँ के मंदिर है उतना ही पुराना उनका इतिहास है।
आज मे आपको एक ऐसे ही प्राचीन मंदिर के बारे मे बताने जा रही हूँ । इस मंदिर कि अपनी मान्यता और अपना इतिहास है । यह मंदिर हिमाचल प्रेदेश के सराहन नामक स्थान पर स्थित हैं । यह मंदिर देवी भीमा काली को समर्पित है। यह देवी बुशहर के पूर्व राजाओं कि कुल देवी है । हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार कुल 51 शक्ति पीठ है जिसमें से एक ये भी है । सराहन शहर को किन्नौर के मुख्य द्वार के रूप मे भी जाना जाता है ।
![]() |
भीमा काली मंदिर |
मंदिर का इतिहास
साराहन नगर बुशहर के पूर्व राजाओं कि राजधानी हुआ करता था । बुशहर के राजा पहले अपने शासन का नियंत्रण कामरो नामक स्थान से करते थे । लेकिन कुछ समय बाद राजा राम सिंह जी ने अपनी राजधानी साराहन से बदलकर रामपुर कर दी । माना जाता है कि पुराणों मे वर्णित है कि प्राचीन काल मे किन्नौर राज्य हि कैलाश हुआ करता था जहां पर शिव भगवान माता पार्वती के साथ रहा करते थे । माना जाता है कि शिव भगवान के प्रबल भगत बाणासुर, पुराण युग के दौरान महान अभिमानी दानव राजा बालि और विष्णु भक्त प्रहलाद के महान पौत्र के सौ पुत्रों में से एक थे, जो इस रियासत के शासक थे।
माता भीमा काली के यहाँ पर प्रकट होने कि कहानी
पुराणिक कथाओं के अनुसार कहानी कुछ इस तरह है की भगवान शिव की शादी माता सती से हुई थी माता सती के पिता का नाम राजा दक्ष था वो भगवान शिव को अपने बराबर नहीं मानता था | एक बार महाराज दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ का आयोजन किया उन्होंने सभी देवी देवताओं की निमंत्रण भेजा किन्तु भगवान शिव और माता सती को निमंत्रण नहीं भेजा गया | यह देखकर माता सती को बहुत क्रोध आया और उन्होंने वह जाकर अपने पिता से इस अपमान का कारण पूछने के लिए उन्होंने शिव भगवान से वह जाने की आज्ञा मांगी किन्तु भगवान शिव ने उन्हें वह जाने से मना की किन्तु माता सती के बार बार आग्रह करने पर शिव भगवान ने उन्हें जाने दिया | जब बिना बुलाए यज्ञ में पहुंची तो उनके पिता दक्ष ने उन्हें काफी बुरा भला कहा और साथ ही साथ भगवान शिव के लिए काफी बुरी भली बातें कही जिसे माता सती सहन नहीं कर पाई और उन्होंने उसी यज्ञ की आग में कूद कर अपनी जान दे दी | यह देख कर भगवान शिव को बहुत क्रोध आया और उन्होंने माता सती का जला हुआ शरीर अग्नी कुंड से उठा कर चारों और तांडव करने लग गये जिस कारण सारे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया यह देख कर लोग भगवान विष्णु के पास भागे तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े किये ये टुकड़े जहाँ जहाँ गिरे वह पर शक्ति पीठ बन गए | माना जाता है कि यहाँ माता का कान गिरा था ।
मन्दिर् का इतिहास
माना जाता है कि यह मंदिर करीब 2000 साल पुराना है । मंदिर का निर्माण हिन्दू और बौद्ध दोनों कला शैलीयों से किया गया है । मुख्य मंदिर केवल आरती या किसी मुख्य त्यौहार पर ही खोला जाता है ।नया मंदिर 1943 में बनाया गया था। मंदिर परिसर में भैरों और नरसिंह जी को समर्पित दो अन्य मंदिर भी हैं। पहाड़ो की बैकड्राप इस मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगा देती है। इस मंदिर को शक्तिपीठों में भी गिना जाता है। जहां पर देवी सती का बायां कान गिर गया था। इस लिहाज से ये मंदिर काफी महत्वपूर्ण बन जाता है।
मुराद पूरी करने वाली माता
इस मंदिर से जुड़ी भी बहुत सी मान्यताये है कहा जाता है की इस मंदिर की यह मान्यता है की जो भी भगत यहाँ सच्चे मन से मुराद मांगता है माता उसकी हर मुराद पूरी करती है माता के भगतो का कहना है की माता बहुत से चमत्कार करती है कई लोग जो बहुत दुखी होकर माता के पास आते है माँ उनके सभी दुःख दूर कर देती है |
हमे उम्मीद है की हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी | यदि आप इसके बारे में और अधिक जानना चाहते हैं या फिर किसी और मंदिर या जगह की जानकारी लेना चाहते है तो कृपया कोमेंट बॉक्स में लिखे यदि इस आलेख को लिखते हुए हमसे कोई ग़लती हुई हो तो उसके लिए हमे क्षमा करे और हमे कोमेंट करके ज़रुर बताए ताकि हम आपको अपने आने वाले आलेख में एक बहेतरिन सुधार के साथ आपको अच्छी जानकारी उपलब्ध कराए |
जय माता दी
0 टिप्पणियाँ