राजेश के तीन बेेटे थे । तीनो ही बङे होनहार थे । तीनों ही बेटे अपने मां बाप का बड़ा आदर करते थे । राजेश और उसकी पत्नी रानी अकसर अपने पड़ोसियों से अपने बच्चो की तारिफ के पुल बांधते रहते थे । राजेश का एक बहुत ही अच्छा मित्र सुरेश था वह अक्सर उसे सम्झाता कि अपनें बच्चों की इतनी तारिफ मत किया करो पर राजेश उसे यह कह कर चिढाता कि तुम्हारे बच्चे ठीक नही निकले तो क्या हुआ मेरे बच्चे बहुत ही अच्छे है मुझे उन पर पुरा यकिन है । सुरेश उसकी बात का बुरा नहीं मानता था वो तो बस उसे खुश देखना चाहता था । काफी समय बीत गया राजेश ने अपने तीनो बच्चों की शादी कर दी । धीरे-धीरे राजेश के तीनो लडके उन्हे छोड़ कर बाहर काम करने चले गए । आसता आसता वो अपनें पत्नीयो और बच्चों को भी अपने साथ ले गए । अब घर मे राजेश और उसकी पत्नी रानी अकेले रह गए । कई दिन हो गए उनसे मिलने उनका एक भी बच्चा घर नही आया और देखते-देखते दिन महीनों में और महीने सालों में बदल गए ।
आस्ता आस्ता बच्चों ने फोन पर बात करना भी छोड़ दिया रानी को अपने बच्चों की इस बेरुखी से बहुत धक्का लगा उसकी तबीयत दिन पर दिन खराब होन लगी । अब तो दवाइयो ने भी असर करना छोड़ दिया सुरेश । यह कह कर राजेश सुरेश के गले लग कर जोर जोर से रोने लगा सुरेश को अपनें दोस्त की यह हालत देख कर बहुत बुरा लगा । एक दिन डाक्टर ने कहा कि आप अपने बच्चों को बुला लिजिएं शायद उन्हे देख कर ये ठीक हो जाए वरना अब हम भी कुछ नही कर सकतें । यह सुनकर राजेश ने तुरंत अपने बच्चों को फोन लगया परन्तु तीनों ने काम और बच्चो के स्कूल का बहाना बना कर आने से मना कर दिया ।
कुछ समय बाद रानी ने दुनिया को अलविदा कह दिया राजेश अन्दर से टुट गया जिन बच्चों के लिए हमने अपनी सारी खुशियों को किनारे रख कर उनकी खुशियों को अधिक अहमियत दी आज उन लोगो के पास अपनी मरी हुई मां के लिए भी समय नही है । रानी के जाने के बाद राजेश अकेला पड गया । एक सुरेश ही था जिसने उसे सम्भाला ।
एक साल बाद जब रानी की बारखी थी तो तीनो बच्चे आए । सारा काम होने के बाद शाम को तीनो बच्चे अपने पिता के पास आए और बोले पिता जी अब आप अकेले इतने बड़े घर मे क्या करोगे ? हम तीनो ने सोचा हैं कि अब आप हमारे साथ ही रहोगे सुरेश भी वही बेठ कर उनकी ये सारी बातें सुन रहा था । राजेश दिल ही दिल बडा खुश हुआ की चलो देर से ही सही मेरे बच्चों को मेरी फ़िक्र तो हुई लेकिन् सुरेश को उन पर कुछ शक सा हुआ । उसने पुछा बहुत अच्छी बात है यह तो पर मेरा यह दोस्त तुम मे से रहेगा किस के पास इसका फेसला कोन करेगा तीनों ने कहा की पिता जी तीन तीन महीने कर के हम तीनो के पास रह लेगे और जो तीन महीने बचेगे वो तीर्थ यात्रा पर निकल जाया करेंगे । राजेश मन ही मन बहुत खुश हुआ की चलो इस बहाने मुझे बच्चों के साथ रहना का मोका तो मिलेगा और लगे हाथ बहुओं की सेवा का आंनद भी लुगा । सुरेश उन कि चाल समझ गया कि यह तीनों राजेश कि जायदाद हथयाने यहा आये है । लेकिन मेरा दोस्त बहुत सिधा है यहा इनकी चाल नही समझ पाएगा परन्तु में अपने दोस्त के साथ गलत नही होने दे सकता । वह एक तरकीब सोचता है ।
अगले दिन वह अपने दोस्त को सारी कहानी समझाने की कोशिश करता हैं परन्तु राजेश उसकी बात यह कह कर नकार देता है कि यह तुम्हारी गलत फहेमी है मेरे बच्चे यहा मेरे लिए आये है उन्हे मेरी जायदाद मे कोइ रुचि नही है । सुरेश समझ जाता है। कि उसे अपने दोस्त कि आखें खोलने के लिए कुछ ना कुछ तो करना ही पढेगा ।
अगले दिन वो पंचायत बुला लेता है और कहता है की बोलो बच्चों राजेश को कोन अपने साथ रखेगा वो वहीं बात धोराते है कि पिता जी तीन तीन महीने हमारे पास रहेगे और तीन महिने अपने रिश्ते नाते वालो और तीर्थ यात्रा कर लिया करेगे । प्रधान राजेश से पुछ्ता है कि क्या तुम सहमत हो राजेश कहेता हैं हा बिलकुल ठीक है राजेश के तीनों बेटे बड़े हैरान होते है कि इस बात के लिए पञ्चायत बिठाने कि क्या जरुरत थी । सुरेश कहता है पञ्चायत इसलिए बिठाई गई है क्योंकि तुम्हारे पिताजी ने अपना घर और ज़ायदाद गांव के गरिबों को बाटने का फैसला किया है यह सुनते ही तीनों बेटे आग बबुला हो जाते है और सुरेश से कहते है बुढे तेरा दिमाग खराब हो गया है तेरी हिम्म्त कैसे हुई हमारी ज़मीन को दान मे देने कि वो तीनों वही खड़े होकर आपस मे जमीन का बटवारा करने लगते हैं यह सब देख कर राजेश सुन बुन रह जाता है उसकी आखों से आसूं बहने लगते है यह देख सुरेश उसके पास आकर माफी मांगता है की मुझे माफ करना मेरा इरादा तुम्हे दुख पहुंचाने का नही था बस मै तुम्हारी आखें खोलना चहाता था । राजेश सुरेश का धन्यवाद करता है । उसके बच्चे कागज तैयार करवाकर उसे हस्ताक्षर करने को कहेते है ।
सुरेश कागज लेकर उन्हे फाड देता है और अपना फैसला सुनाता है कि तुम तीनो एक एक करके तीन तीन महीने मेरे पास आकर रह सकते हो और बाकि के तीन महीने अपने आप इंतजाम कर लेना । यहा सुनकर तीनो हकेबके होकर रहे जाते हैं और वहां पर खडा प्रतेक इनसान सुरेश के इस फैसले से खुश होकर तालिया बजाने लगे ।
हमे अपने मां बाप का ध्यान केवल इसलिये नही रखना चाहिए कि बदले में वो हमे अपनी धन संपति दे । अपितु ये सोच कर रखना चाहिए कि उन्होने हमारा पालन पोषन किया वो भी बिना किसी लालच के हमे सुखे मै सुलाया खुद गीले मै सोए बिना किसी लालच के फिर उनकी सेवा करने मे भला हम लालच क्यों करें ।
आपको मेरी यहा कहानी कैसी लगी जरुर बताऐ ।
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