नमस्कार दोस्तों,
आज में फिर आपके पास एक नए ब्लॉग को लेकर आई हु। मुझे नहीं लगता की इस पूरी दुनिया में कोई भी ऐसा इन्सान होगा जिसने हिमाचल प्रदेश के बारे में ना ही सुना होगा। हिमाचल प्रदेश एक ऐसा राज्य है जिसे अपनी सुन्दरता की वजह से पूरी दुनिया जानती है। अपने ऊँचे-ऊँचे बर्फ और हरे पेड़ो से ढके पहाड़ किसी स्वर्ग से कम नहीं है यहा पर बहने वाली नदिया किसी को भी अपनी और आकर्षित कर सकती है। और यहाँ पर स्थापित मंदिर जितनी अपनी सुन्दरता के लिए जाने जाते है उतने ही अपनी कहानियों के लिए।
आज में आपको एक इसे ही सुंदर मंदिर के बारे में बताने जा रही हु। जो जितनी अपनी कहानी और अपनी सुन्दरता के लिए जाना जाता है उतना ही अपने रहस्यमय पहाड़ के लिए जाना जाता है |
मणिमहेश पर्वत का इतिहास
मणिमहेश पर्वत हिमाचल प्रदेश के चंबा के उपमंडल भरमौर के तहत आता है जो मणिमहेश पर्वत के नाम से प्रसिद है। यह एक बहुत ऊँचा पर्वत है जहा पर अलौकिक प्रकाश के दर्शन होते है। माना जात ही की यह प्रकाश भगवान शिव के गले में लिपटे शेषनाग की मणि से निकलता है। कहा जाता है कि यहा प्रकाश इस बात का प्रतीक है कि हर सुबह भगवान शिव अपने आसन पर विराजमान होते है। कुछ स्थानीय लोगों की यहा भी मान्यता है कि बसंत ऋतू के आरम्भ में और वर्षा ऋतू के अंत के लगभग छह महीने तक भगवान शिव इसी मणिमहेश कैलाश पर सपरिवार निवास करते है और उसके बाद शरद ऋतू से लेकर बसंत ऋतु तक नीचे पतालपूरी में निवास करते है |
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मणिमहेश झील |
मणिमहेश पर्वत का रहस्य
मणिमहेश पर्वत का इतिहास बहुत ही रहस्यमई है। आज तक कोई भी इस पर्वत पर पूरी तरह से पहुच नहीं पाया है कई लोगों ने इस पर चढने का प्रयास किया है परन्तु आज तक कोई भी सफल नहीं हो पाया है। माना जाता है कि इसके पीछे कई रहस्य छिपे हुए है और इनसे जुडी कई कहानिया है कहा जाता है कि कई सालो पहले एक गडरिया अपनी भेदों को इस पर्वत के निचे चुगा रहा था उसने इस पर्वत पर अपनी भेड़ो के साथ चढने की कोशिश की लेकिन इससे पहले की वह इस पर्वत के ऊपर के भाग तक पहुँच पाता वह एक पत्थर बन गया माना जाता है की आज तक कोई भी पर्वत रोही इस पर्वत के ऊपर चढाई नहीं कर पाया है | कहा जाता है की जिस किसी ने भी इसके उपरी भाग तक पहुचने की कोशिश की है वो या तो पत्थर में बदल गया या फिर भुसंख्लन की चपेट में आकर अपनी जान से हाथ धो बैठा |
मणिमहेश पर्वत किसने बनवाया है |
मणिमहेश मंदिर किसने बनवाया इसके पीछे कोई पुराणिक कथा तो नहीं है परन्तु कुछ स्थानीय लोगो का कहना है की उनके बुजुर्ग उन्हें इस पर्वत की एक लोकप्रिय कथा सुनाते है जिसके अनुसार माना जाता है की भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह करने के बाद इस पर्वत मणिमहेश की रचना की थी | और इस पर्वत का नाम गिरिजा रखा था जिसकी आज भी पूजा की जाती है |
मणिमहेश किस लिए प्रसिद है |
मणिमहेश एक अपने ऊँचे पर्वत के लिए प्रसिद है और दूसरा अपनी सुंदर झील के लिए प्रसिद है यह एक तीर्थ स्थल के रूप में भी जाना जाता है | माना जाता है की यह झील भगवान शिव को समर्पित है | यह झील पीर पंजाल श्रेणी में स्थित एक पवित्र झील है इस झील की ऊंचाई लगभग 4,080 मीटर है इस झील का अपना महत्व है कहा जाता है की मणिमहेश का शाब्दिक अर्थ ही " शिव का आभूषण " है |
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मणिमहेश डल झील |
मणिमहेश यात्रा
वर्ष के अधिकाश समय मणिमहेश यात्रा बर्फबारी के कारण बंद रहती है | परन्तु साल में एक बार यह यात्रा की जाती है | हर साल भादो के महीने में जब चंद्रमा का प्रकाश के आधे हो जाने के आठवे दिन इस झील में एक पावन मेले का आयोजन किया जाता है जिसमे हजारो की संख्या में सरधालो यह आते है और इस पावन झील में डुबकी लगाते है |
15 दिन की अवधि में चलने वाली यह यात्रा बहुत ही पावन मानी जाती है इस यात्रा में सरधालो नंगे पाव लगभग 14 किलोमीटर की यात्रा करते है इस यात्रा की एक और खास बात यह है की इस यात्रा में सरधालो यात्रा करते हुए भजन गाते है और एक जुलूस भी निकालते है जिसे स्थानीय रूप में "| पवित्र छारी " के रूप में जाना जाता है |
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भगवान् शिव का त्रिशूल |
इस यात्रा की शुरुवात लक्ष्मी नारायण मंदिर और चंबा में दशनामी अखाड़े से शुरू होती है जब इस यात्रा को सरधालो पूरा कर लेते है उसके बाद मणिमहेश झील में डुबकी लगा कर भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करते है | महिलाऐ गोरी कुंड में और पुरुष शिव कटोरी में डुबकी लगाते है |
मणिमहेश में कौन सी नदी है |
मणिमहेश में केलाश चोटी के ठीक नीचे से मणिमहेश गंगा का उद्भव होता है माना जाता है की इस नदी का कुछ अंश झील से होकर एक बहुत ही सुंदर झरने के रूप में बहार निकलता है इसकों लेकर यह एक पुरानी मान्यता भी है की यदि कोई भी इस पवित्र झील के तीन बार सच्चे मन से परिक्रमा करता है तो भगवान उसकी सभी इच्छाए पूरी करता है
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" जय भोलेनाथ "
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