मुडेश्वरी मंदिर जिसे इस दुनिया का पहला मंदिर भी कहा जाता है

 नमस्कार दोस्तों ,

                              आज में फिर एक नए ब्लॉग के साथ आपके पास आई हु| हम सब जानते है की भारत एक ऐसा देश है जहा सभी धर्मो के लोग आपस में बहुत ही प्यार से रहते है । भारत में सभी धर्मो के लोगो के आस्था से जुड़े हुए धार्मिक स्थल है जो बहुत ही सुंदर है और लोगो की उनसे आस्था और विश्वास जुडा हुआ है | यहा पर स्थित मंदिर बहुत ही पुराने है पर क्या कभी आपके दिमाग में भी ये सवाल आता है की इस दुनिया में सबसे पहला मंदिर कौन सा होगा  ? तो आज में आपको उसी मंदिर के बारे में बताने जा रही हु |

                            भारत का सबसे पहला मंदिर मुडेश्वरी मंदिर को माना जाता है | जो बिहार में स्थित है | माना जाता है की इस मंदिर का इतिहास सबसे पुराना है और उतनी ही रोचक है इस मंदिर की कहानी | इस मंदिर को शक्तिपीठ भी कहा जाता है ।


मुडेश्वरी मन्दिर


माता के मुंडेश्वरी नाम के पीछे की कहानी 

                            माता के मुडेश्वरी नाम पढने के पीछे की कहानी भी बड़ी रोचक है माना जाता है की  चंड मुंड नाम के दो असुर का वध करने के लिए देवी यहाँ आई थी चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था यही पर माता ने मुंड का वध किया था इसीलिए यह माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद है  इस पहाड़ी पर चारो और कई बड़े पत्थर और स्तम्भ बिखरे हुए है जिनको देखकर लगता है की उन पर श्रीयंत्र और कई सिद्ध यंत्र - मंत्र लिखे हुए है | 

मंदिर का इतिहास 

                        माना जाता है की इस मंदिर का निर्माण 1700  साल पहले हुआ था| यह मंदिर बिहार के कैमूर जिले में स्थित है इस मंदिर को बिहार के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है यह मंदिर माता पावर्ती और भगवान शिव को समर्पित है कहां जाता है की 1812 इसवी से लेकर 1904  इसवी के बीच कई ब्रिटिश यात्री इस जगह पर भ्रमण करने आये है जिनमे से कुछ यात्री है आर . एन . मार्टिन , फ्रांसिस बुकानन और ब्लाक है |




वास्तुकला 

                     यह मंदिर पंवरा पहाड़ी के ऊँचे शिखर पर स्थित है जिसकी ऊंचाई लगभग 600 फीट है इस मंदिर में भगवान शिव और पावर्ती की मूर्ति के इलावा भगवान शिव के पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है कहा जाता है की जिस पत्थर से यह शिवलिंग बनाया गया है उसमे सूर्य की स्थिति के साथ साथ पत्थर का रंग भी बदलता रहता है   यह मंदिर के चारो और का दृश्य बहुत ही मनोहर है माना जाता है की पहले इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए 4 मुख्य द्वार थे लेकिन बाद में तीन द्वारो को बंद करके एक ही द्वार को मुख्य प्रवेश द्वार बनाया गया |





 पुरातत्वविदों  के अनुसार यहाँ से प्राप्त हुए शिलालेख 390 इसवी के बीच के है अगर हम बात करे इस मंदिर की बनावट की तो मुडेश्वरी  मंदिर की नक्काशी और मुर्तिया उतर गुप्त कालीन की है  यहा मंदिर पत्थर से बना हुआ एक अष्टकोणीय  मंदिर है और इसी मंदिर के पूर्वी खंड में माता मुंडेश्वरी की पत्थर से बनी भव्य अति प्राचीन मूर्ति है जो इस मंदिर के आकर्षण का सबसे मैन केंद्र है यह पर माता वाराही रूप में विराजमान है जो अपने वाहन माहिस पर विराजमान है  इस मंदिर में लोग आज भी पशु बलि के रूप में माता को बकरा चढाते है परन्तु उसका वध नहीं किया जाता

इस मंदिर की खासियत क्या है 

                         कहा जाता है की इस मंदिर का सम्बन्ध मारकंडे पुराण से भी जुडा हुआ है  यह मंदिर बिहार के सभी मंदिरों में से सबसे खुबसूरत है जो पुरे भारत में अपनी वास्तुकला और प्राचीन इतिहास के कारण इसे  विशेष स्थान रखता है  इस मंदिर का निर्माण पत्थर पर वास्तुकला से किया गया है इस मंदिर की कला में आप बिहार की संस्कृति की झलक को देख सकते है इस मंदिर में चंड मुंड  के वध से जुडी कुछ कथाए भी मिलती है  चंड मुंड शुम्भ निशुम्भ के सेना पति थे जिनके वध इसी भूमि पर हुआ था 

बलि देने की प्रथा अनोखी 

                   इस मंदिर की यह प्रथा प्राचीन है परन्तु अनोखी भी है और चमत्कारी भी है ? अब आप जानना चाहेगे वो केसे ? इस मंदिर में भी और मंदिरों की तरह ही बकरे की बलि चढाई जाती है  परन्तु उनकी हत्या नही की जाती अपितु बलि दिए जाने वाले बकरे को माता की मूर्ति के समुख खड़ा किया जाता है  फिर उस मंदिर के पुरोहित मन्त्र का उचारण कर बकरे पर चावल छिडकते है जिसे वह बकरा कुछ समय के लिए बेहोश हो जाता है जिसके बाद उसे बहार छोड़ दिया जाता है इस चमत्कार को देख कर सब लोग हैरान हो जाते है 




मुंडेश्वरी पहुचने का मार्ग 

                                     आप यह पर अपने निजी वाहन, ट्रेन, बस से पहुच सकते है रेल से पहुचने के लिए मंदिर के सबसे नजदीकी रेलवे भभुआ रोड है यह मुगलसराय गया रेलखंड लाइन पर है मंदिर स्टेशन से करीब 25  किलोमीटर की दुरी पर स्थित है पहले मंदिर तक पहुचने का रास्ता बहुत ही कठिन था किन्तु अब मंदिर तक पहुचने के लिए पहाड़ को काट कर सीढिया व रेलिग युक्त सड़क बनाई गई है ।

                                   हमे  उम्मीद है की हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी | यदि आप इसके बारे में और अधिक जानना चाहते हैं या फिर किसी और मंदिर या जगह की जानकारी लेना चाहते है तो कृपया कोमेंट बॉक्स में लिखे यदि  इस आलेख को लिखते हुए हमसे कोई ग़लती हुई हो तो उसके लिए हमे क्षमा करे और हमे कोमेंट करके ज़रुर बताऐ ताकि हम आपको अपने आने वाले आलेख में एक बहेतरिन सुधार के साथ आपको अच्छी जानकारी उपलब्ध कराए

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