महामाया मंदिर

 नमस्कार दोस्तों ,

                                आज में फिर आपके पास एक नए ब्लॉग के साथ आई हु हम सब जानते है की भारत वर्ष जितना अपनी सुन्दरता के लिए जाना जाता है उतना ही यह के धर्म और धार्मिक लोगो के लिए जाना जाता है । यह के प्रसिद मंदिर अक्सर यह के लोगों को ही नही बल्कि विदेश में रहने वाले लोगो  के लिए भी आकर्षण का कारण है आज में आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रही हु जिसे सब 51 वे शक्ति पीठ के नाम से भी जानते है ।




                     यह मंदिर हिन्दू धर्म में स्थित 51वे शक्ति पीठ में से एक है यह मंदिर भारत के जम्मु  कश्मीर राज्य के अमरनाथ पर्वत पर स्थित है माना जाता है की इस मंदिर का इतिहास लगभग 5००० साल पुराना है इस मंदिर में विराजमान शक्ति को महामाया के रूप में पूजा जाता है और भेरव को त्रिस्न्धेयेश्वर के रूप में पूजा जाता है माना जाता है की पुरानो के अनुसार जहा सती माता के अंग के टुकड़े गिरे थे वहाँ - वहाँ  शक्ति पीठ स्थापित हो गये इन्हें हिन्दू धर्म में बहुत ही महतवपूर्ण माना जाता है ये तीर्थ केवल हिमाचल में ही नही अपितु पुरे भारत वर्ष में स्थापित है ।

माँ के उद्गम की कहानी 

                               कहानी कुछ इस तरह है की भगवान शिव की शादी माता सती से हुई थी माता सती  के पिता का नाम राजा दक्ष था वो भगवान शिव को अपने बराबर नहीं मानता था | एक बार महाराज दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ का आयोजन किया उन्होंने सभी देवी देवताओं की निमंत्रण भेजा किन्तु भगवान शिव और माता सती को निमंत्रण नहीं भेजा गया | यह देखकर माता सती को बहुत क्रोध आया और उन्होंने वह जाकर अपने पिता से इस अपमान का कारण  पूछने के लिए  उन्होंने शिव भगवान से वह जाने की आज्ञा  मांगी किन्तु भगवान शिव ने उन्हें वह जाने से मना की किन्तु माता सती के बार बार आग्रह करने पर शिव भगवान ने उन्हें जाने दिया | जब बिना बुलाए यज्ञ में पहुंची तो उनके पिता दक्ष ने उन्हें काफी बुरा भला कहा और साथ ही साथ भगवान शिव के लिए काफी बुरी भली बातें कही जिसे माता सती सहन नहीं कर पाई और उन्होंने उसी  यज्ञ की आग में कूद कर अपनी जान दे दी | यह देख कर भगवान  शिव को बहुत क्रोध आया और  उन्होंने माता सती  का जला हुआ शरीर  अग्नी कुंड से उठा कर चारों और तांडव करने लग गये जिस कारण सारे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया यह देख कर लोग भगवान विष्णु के पास भागे तब भगवान  विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े किये ये टुकड़े जहाँ जहाँ गिरे वह पर शक्ति पीठ बन गए | इसी स्थान पर माता का गला गिरा था 

देवी के महामाया कहे जाने की कहानी 

                             महामाया जिसे महादेवी के नाम से भी जाना जाता है  जिन्हें भ्रम पैदा करने वाला भी कहा जाता है हिन्दू धर्म में मान्यता है की यही माता भ्रम को पैदा और नष्ट करती है जो हमे विश्वास दिलाती है की यह दुनिया वास्तिवक है और हमे इस दुनिया से जोड़े रखती है ज्यादा तर लोग यही मानते है की माता महामाया माता दुर्गा ही रूप है और कुछ इन्हें लक्ष्मी माता का रूप मानते है ।




मंदिर के बारे में 

                                   महामाया मंदिर ज्म्मु शहर के पूर्व की और तवी नदी के बाए किनारे पर एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है स्थानीय लोग इसे मोहमाया मंदिर के नाम से भी पुकारते है बहु फोर्ट से यह मंदिर 3 - 4  किलोमीटर की दुरी पर स्थित है माना जाता है की आज से लागभग 50 साल पहले इस मंदिर के चारो और का जंगल इतना घना था की इस मंदिर तक पहुचना बहुत मुश्किल था की कभी कभी सरधालो जम्मू शहर के पूर्व की और से तवी नदी पार करके माता के दर्शन के लिए इस मंदिर तक पहुचते थे ।

                                            आज भी लोगो का यह विशवास है की सेंकडो साल पहले यहाँ एक समृद राच्य च्धारा नगरी नाम से प्रसिद था । उस जमाने में भी महामाया का मंदिर इसी स्थान पर स्थित बताया जाता है माना जाता है की कुछ कारणों के कारण से धरा नगरी के विध्वंश के बाद यह मूर्ति सेंकडो वर्षो तक तवी किनारे जंगलो में पड़ी रही ।

                                              जब गुलाब सिंह जम्मू के महाराजा बने तो उन्होंने जम्मु के पास स्थित कई मंदिरों और किलो तथा भवनों का निर्माण करवाया एक दन्त कथा के अनुसार देवी महामाया ने राजा को स्वपन में दर्शन दिए और कहा की मेरी मूर्ति तवी नदी के किनारे कई सालो से पड़ी हुई है उसे वह से उठाकर मंदिर में स्थापित करो सुबह होते ही महाराज अपने दरबारियों और सिपाहियों के साथ मूर्ति की तलाश में निकल पड़े तवी नदी के किनारे का सारा जंगल छान मारा परन्तु मूर्ति कही भी नही मिली सभी थक हार कर वापिस  महल लोट आये महाराजा ये सब जानकर बहुत परेशान हो गये कुछ समय बीत जाने के बाद राजा को फिर माता ने स्वप्न में दर्शन दिए और अपनी मूर्ति तलाश करने को कहा किन्तु इस बार माता ने उन्हें उस स्थान के बारे में भी बताया जहा उनकी मूर्ति है माता के आदेश अनुसार मूर्ति की तलाश की गई और मूर्ति मिल भी गई फिर राजा द्वारा उस मूर्ति को मंदिर में स्थापित किया गया ।

                                                         माना जाता है की 1987 में बहुत भारी वर्षा हुई जिसमे  महामाया का मंदिर गिर गया किन्तु माता की मूर्ति और कुछ मोहरे ही बाकी रहा गई थी उन्ही दिनों राज्यपाल श्री जगमोहन ने इस इलाके का दौरा  किया माता की मूर्ति के दर्शन किये और मंदिर का निर्माण कार्य आरम्भ किया माता के मंदिर तक पहुचने के लिए सड़क निर्माण भी करवाया यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशाला बनवाई गई ।

        

                                          मे  उम्मीद है की हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी | यदि आप इसके बारे में और अधिक जानना चाहते हैं या फिर किसी और मंदिर या जगह की जानकारी लेना चाहते है तो कृपया कोमेंट बॉक्स में लिखे यदि  इस आलेख को लिखते हुए हमसे कोई ग़लती हुई हो तो उसके लिए हमे क्षमा करे और हमे कोमेंट करके ज़रुर बताऐ ताकि हम आपको अपने आने वाले आलेख में एक बहेतरिन सुधार के साथ आपको अच्छी जानकारी उपलब्ध कराए ।   

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